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PM पद की दावेदारी पर सीएम योगी का बड़ा बयान: “मैं एक योगी हूं और…..

लखनऊ |  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि—–

  • राजनीति मेरे लिए फुल टाइम जॉब नहीं है। इसकी भी एक समय सीमा होगी। केंद्रीय लीडर्स के साथ मेरा कोई मतभेद नहीं है। मतभेद होता तो यहां नहीं बैठा होता। पार्टी के कारण ही मैं यहां बैठा हूं। मैं खुद को विशेष भी नहीं मानता हूं।
  • सड़कें चलने के लिए हैं और जो ऐसा कह रहे हैं कि सड़क पर नमाज पढ़ना है तो उन्हें हिंदुओं से अनुशासन सीखना चाहिए। प्रयागराज में 66 करोड़ लोग आए। कहीं लूटपाट ,आगजनी ,छेड़छाड़ तोड़फोड़ नहीं हुई। यही धार्मिक अनुशासन है।
  • मैं दिल से एक योगी हूं और राजनीति मेरा पूर्णकालिक व्यवसाय नहीं है। मैं मुख्यमंत्री पद पर उत्तर प्रदेश की जनता की सेवा करने के लिए हूं और मैं हमेशा के लिए राजनीति में नहीं आया हूं। मेरी पार्टी भाजपा ने मुझे जो जिम्मेदारी दी है उसे मैं निभा रहा हूं।

दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर खंडन किया। उन्होंने कहा कि मैं कब तक राजनीति में रहूंगा इसकी समय सीमा है। मैं हमेशा के लिए राजनीति में नहीं हूं। बता दें कि इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं काफी तेज हैं और योगी को उनके समर्थकों के द्वारा प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है। ये चर्चाएं प्रधानमंत्री मोदी के 30 मार्च को संघ मुख्यालय जाने के बाद और तेज हो गई हैं। सोशल मीडिया पर हो रही चर्चाओं में सीएम योगी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है।

इस पर शिवसेना के नेता संजय राउत ने भी बयान दिया है। उन्होंने कहा कि देश का अगला प्रधानमंत्री महाराष्ट्र से होगा जिस पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मोदी जी ही देश का नेतृत्व करेंगे। हमारी संस्कृति में जब तक पिता जीवित होता है उत्तराधिकारी की बात नहीं की जाती है।

राजनीति और धर्म का मिलन गलत नहीं
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राजनीति में धर्म का मिलन गलत नहीं है। ये हमारी गलती है कि हम धर्म को कुछ स्थानों के लिए सीमित कर देते हैं और राजनीति को कुछ लोगों के लिए छोड़ देते हैं। इससे समस्याएं उत्पन्न होती हैं। राजनीति का उद्देश्य स्वार्थों की पूर्ति करना नहीं है बल्कि समाज की भलाई करना  है। इसी तरह धर्म का उद्देश्य भी परमार्थ होता है। जब धर्म का प्रयोग स्वार्थ की पूर्ति के लिए होता है तो मुश्किल आती है लेकिन परमार्थ का उद्देश्य होने पर धर्म प्रगति के मार्ग  खोलता है।

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